नई दिल्ली / मॉस्को: भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का रूस दौरा इन दिनों चर्चा में है। खास बात ये है कि यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है जब अमेरिका की तरफ से भारत को यह संकेत मिला है कि यदि उसने रूस से कच्चे तेल की खरीद बंद नहीं की, तो उस पर व्यापारिक शुल्क (टैरिफ) बढ़ा दिए जाएंगे।
अमेरिका की नाराज़गी क्यों?
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जो 2024 के चुनाव में फिर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हैं, ने भारत को चेतावनी भरे लहजे में कहा कि यदि रूस से तेल आयात नहीं रुका तो भारत को इसका आर्थिक खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि भारत पर भारी टैरिफ लगाया जाएगा।
भारत ने रखा साफ रुख
भारत ने तुरंत संकेत दे दिए कि वह अपनी विदेश नीति स्वतंत्र रूप से तय करता है और उसे किसी भी तरह के दबाव में नहीं लाया जा सकता। सरकारी सूत्रों ने साफ किया कि भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों के लिए वैध और दीर्घकालिक समझौतों के तहत तेल खरीदता है, और यह पूरी तरह अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुरूप है।
डोभाल का रूस दौरा क्यों अहम?
डोभाल की यह यात्रा केवल औपचारिक नहीं है। जानकार मानते हैं कि भारत अब दुनिया को ये दिखाना चाहता है कि उसके फैसले घरेलू हितों पर आधारित होते हैं, न कि किसी देश विशेष के इशारे पर।
इस दौरे में रक्षा सहयोग, ऊर्जा आपूर्ति और सुरक्षा रणनीतियों पर रूस के साथ चर्चा होने की संभावना है। साथ ही भारत रूस से लंबी अवधि की ऊर्जा साझेदारी पर भी विचार कर सकता है।
आगे क्या हो सकता है?
संभावना है कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी जल्द ही रूस जा सकते हैं, जिससे यह साफ होता है कि भारत अपने पुराने रणनीतिक साझेदार रूस के साथ रिश्तों को और मजबूत करने के मूड में है — चाहे अमेरिका को यह रास आए या नहीं।
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