नई दिल्ली / बीजिंग, 7 अगस्त 2025: जब व्यापार की राजनीति गरम हो जाए, तो राजनयिक बयानों का असर तब तक चलता है जब तक कोई सुलह नहीं हो जाती। इसी बीच, चीन ने सार्वजनिक रूप से अमेरिका की उस योजना की आलोचना की है जिसमें भारत को अतिरिक्त 25% टैरिफ लगाने का प्रस्ताव शामिल है।
चीन के विदेश मंत्रालय ने साफ कहा है:
“यह नीति भूल से हो रहा हो, ऐसा नहीं लगता। हम टैरिफ का मिसयूज़ करने के खिलाफ़ हैं और अपनी नीति में पारदर्शिता के पक्षधर हैं।”
क्या हुआ और क्यों अब यह मुद्दा गरमाया है?
- अमेरिका ने हाल ही में रूस से तेल खरीदने के चलते भारत पर पहले ही 25% टैरिफ लगाया हुआ है। अब इस पर एक और 25% जोड़कर कुल टैरिफ 50% कर दिया गया है।
- भारत ने तुरंत जवाब देते हुए कहा कि यह कार्रवाई अन्य देशों पर इस तरह की नीतियां लागू नहीं होने के बावजूद सिर्फ उन्हें निशाना बनाना “अनुचित और असंगत” है।
- वहीं चीन ने इस पर अपना कदम उठाते हुए डबल स्टैंडर्ड की ओर ध्यान खींचा।
चीन ने क्यूँ मोर्चा संभाला?
बात सिर्फ व्यापार की नहीं, बल्कि राजनयिक संदेश की भी है। चीन चाहता है कि वैश्विक व्यापार न मानवीय या राजनीतिक एजेंडों की कैद बने।
चीन की विदेश नीतिदर्शी लाइन स्पष्ट है:
“हम उच्च वोल्टेज वाले शुल्क समर्थन सिद्धांत नहीं मानते।”
भारत की प्रतिक्रिया और वैश्विक असर
- प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत अपने किसानों और साधारण नागरिकों के हित से समझौता नहीं करेगा।
- भारत की संसद में विपक्ष ने इस टैरिफ को “क्रूड बुलिंग” करार दिया है, और सरकार को रणनीतिक रवैया बनाए रखने का आह्वान किया है।
- वैश्विक स्तर पर ब्राज़ील और अन्य BRICS साझेदार भारत के पक्ष में खड़े नजर आ रहे हैं, जो इस विवाद को केवल दो देशों का मुद्दा नहीं बल्कि एक रणनीतिक संवाद बना रहा है।
निष्कर्ष:
ट्रेड वार के इस दौर में चीन ने अमेरिका के कदम की आलोचना कर भारत को अनुकूलता का मौका दिया है। यह सिर्फ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का मुद्दा नहीं, बल्कि सामरिक रिश्तों की चाल भी है। आगे की राह तय होने में अभी वक्त बाकी है, लेकिन स्थिति स्पष्ट रूप से संघर्ष और संवाद दोनों की दिशा में बढ़ रही है।
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